सोमवार, फ़रवरी 12, 2018

तुमने जिन बातों को झूठ कहा था

तुमने जिन बातों को झूठ कहा था
वो बातें सच से भी ज़्यादा सच्ची हैं

बहुत बुरा हुआ उन बातों के संग
जो अच्छे से भी ज़्यादा अच्छी हैं

अनुराग अनंत

उसने कहा कुछ और, मैंने सुना कुछ और..!!

उसने कहा कुछ और, मैंने सुना कुछ और
कुछ और कहने सुनने को, इश्क कहते हैं क्या

जफा, वफ़ा लगे है या रब इस दौर में
इसी हसीन दौर को, इश्क कहते हैं क्या

उसने जुल्म किया और हम हंस के सह गए
हंस के जुल्म सहने को, इश्क कहते हैं क्या

आती नही है नींद और हम सोये हुए से हैं
जगते हुए सोने को, इश्क कहते हैं क्या

मुसलसल जारी हैं सांस पर जिन्दा नहीं हैं हम
मरते हुए जीने को, इश्क कहते हैं क्या

मैं जो दर्द-ए-दिल कहूँ, दुनिया शायरी कहे है
सुखन-ए-दर्द-ए-दिल को, इश्क कहते हैं क्या

अनुराग अनंत

शनिवार, फ़रवरी 10, 2018

वो इस तरह बिछड़ा है कि मुझमें बरामद हो रहा है...!!

वो इस तरह बिछड़ा है कि मुझमें बरामद हो रहा है
उसका नाम मेरे भीतर प्यार का बरगद हो रहा है

उससे मिलने से पहले मेरा कोई कद नहीं था
उससे मिलके मेरा 'मैं' आदमक़द हो रहा है

मैं चाहूँ तो भी उसके पार जा नहीं सकता
वो शख्स मेरे लिए अब मेरी हद हो रहा है

एक तरफ़ इश्क़ है, एक तरह बाकि दुनिया
उसका नाम है जो बीच की सरहद हो रहा है

पहले इस तरह तड़प कर जीना ज़हर लगता था
अब जो ज़हर था,धीरे-धीरे वही शहद जो रहा है

अनुराग अनंत

मैं जब तुमसे दिल का मरहला कह रहा था।

मैं जब तुमसे दिल का मरहला कह रहा था।
कह नहीं रहा था, दरअसल मैं ढह रहा था
तुम्हारी नज़र में नदी में महज़ पानी ही बह रहा था
मेरी नज़र में पानी के साथ किनारा भी बह रहा था
अनुराग अनंत

कोई नया ग़म लाओ पुराने सब पुराने हो गए...!!

कोई नया ग़म लाओ पुराने सब पुराने हो गए
कितने दीवाने थे हम, कितने दीवाने हो गए

यहीं इसी दुनिया में हमारी सब नादानी खो गयी
कितने बचकाने थे हम, कितने बचकाने हो गए

आग से पहले डरते थे, अब डर नहीं लगता
कितने परवाने थे हम, कितने परवाने हो गए

वो हमें देखे, मुस्कुराए ये चाहत भी नहीं है अब
कितने अनजाने थे हम, कितने अनजाने हो गए

छूट गया वो दर जहाँ दर दर पे अपनी कहानी थी
कितने ठिकाने थे हम, कितने ठिकाने हो गए

अनुराग अनंत

एक बार किया इश्क़ अब कर न सकेंगे...!!

एक बार किया इश्क़ अब कर न सकेंगे
एक बार तो मर गए हैं अब मर न सकेंगे

वो चाहता है जब चाहे बिखेर दे हमको
एक बार बिखर गए हैं अब बिखर न सकेंगे

उसकी निगाह से डरते हैं, बस इतना जान लो तुम
निगाह से उतर गए है, निगाह में उतर न सकेंगे

क्या कहें किस तरह गुज़रे हैं उसके कूचे से हम
जिस तरह गुज़रे हैं, उस तरह गुज़र न सकेंगे

हम उनसे, वो हमसे, हम एक दूजे से डरते थे
जिस तरह डरते थे, अब किसी से डर न सकेंगे

जो कर दिया, सो कर दिया, वो वक़्त ही अलग था
जो कर दिया हमने, अब फिर कभी कर न सकेंगे

अनुराग अनंत

इस तरह नाकाम हुए हैं हम...!!

इस तरह नाकाम हुए हैं हम
कि आदमी-ए-काम हुए हैं हम

दोपहर से जी भर जाए तो इधर आना
दोपहर से गुज़र कर शाम हुए हैं हम

रफ़्ता रफ़्ता रास्ते में हम रास्ते से हो गए
चलते चलते कुछ इस तरह तमाम हुए हैं हम

शहर में हर कोई अब हमको शायर कहता है
तेरे इश्क़ में यार ऐसा बादनाम हुए हैं हम

जो हमारा ज़िक्र छिड़ता है तो लोग तौबा करते हैं
जो मंज़िल तक न पहुँचा है ऐसा अंजाम हुए हैं हम

अनुराग अनंत