बुधवार, दिसंबर 20, 2017

वो मुझे क़त्ल कर दे ये मेरी ख़्वाहिश है...!!

वो मुझे क़त्ल कर दे ये मेरी ख़्वाहिश है
यहां कौन कम्बख़त है जो मौत से डरता है

मेरे भीतर रहता है जो आदमी है वो हर वक़्त
मौत बस मौत फ़क़त मौत की बात करता है

मौत मार भी सकती है ये भरम मुझको नहीं
मौत से मेरा तो ताज़िन्दगी का रिश्ता है

कहाँ समझा पाया हूँ अबतलक मैं ही खुद को
अज़ब गुमान है उसे कि वो मुझे समझता है

सुलझना है तो उलझे को उलझा ही रहने दो
सुलझाना चाहता है जो अक्सर वही उलझता है

जिसने जिंदगी भर जिंदगी जी ही नहीं 'अनंत'
वही बस वही शख्स मौत के मारने से मरता है

अनुराग अनंत

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