गुरुवार, दिसंबर 28, 2017

अमा मैं कहाँ भटका हूँ, ये रस्ते भटक गए हैं..!!

अमा मैं कहाँ भटका हूँ, ये रस्ते भटक गए हैं
मैं कल भी चल रहा था, आज भी चल रहा हूँ

क्या करूँ जो हर सू तीरगी ही तीरगी है यार
मैं कल भी जल रहा था, आज भी जल रहा हूँ

इस तरह फिसला हूँ हर किसी से यही कहता हूँ
मैं कल भी संभल रहा था, आज भी संभल रहा हूँ

सूरज हूँ कि लोहा हूँ या कोई कहर हूँ कि क्या हूँ
मैं कल भी ढल रहा था, आज भी ढल रहा हूँ

मेरे पास क्या है ? बस एक उलझन है कि जिससे
मैं कल भी निकल रहा था, आज भी निकल रहा हूँ

अनुराग अनंत

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