गुरुवार, दिसंबर 28, 2017

अमा मैं कहाँ भटका हूँ, ये रस्ते भटक गए हैं..!!

अमा मैं कहाँ भटका हूँ, ये रस्ते भटक गए हैं
मैं कल भी चल रहा था, आज भी चल रहा हूँ

क्या करूँ जो हर सू तीरगी ही तीरगी है यार
मैं कल भी जल रहा था, आज भी जल रहा हूँ

इस तरह फिसला हूँ हर किसी से यही कहता हूँ
मैं कल भी संभल रहा था, आज भी संभल रहा हूँ

सूरज हूँ कि लोहा हूँ या कोई कहर हूँ कि क्या हूँ
मैं कल भी ढल रहा था, आज भी ढल रहा हूँ

मेरे पास क्या है ? बस एक उलझन है कि जिससे
मैं कल भी निकल रहा था, आज भी निकल रहा हूँ

अनुराग अनंत

बुधवार, दिसंबर 20, 2017

मरूंगा यूं कि मारे नहीं मरूंगा..!!

ज़िंदगी तेरे साथ कुछ यूँ करूँगा
मरूंगा यूं कि मारे नहीं मरूंगा

उठ गया है यकीन मेरा मुझसे ही
मैं यूँ उठा हूँ कि अब क्या गिरूंगा

आईने के सामने जाने से डरता हूँ
यूँ डर गया हूँ कि अब क्या डरूंगा

न करके यार ये क्या कर दिया तुमने
जो कर दिया तो फिर मैं क्या करूँगा

कर दिया है तुमने जो तुम्हें करना था
सब कर दिया तुमने अब मैं क्या करूँगा

अनुराग अनंत

वो मुझे क़त्ल कर दे ये मेरी ख़्वाहिश है...!!

वो मुझे क़त्ल कर दे ये मेरी ख़्वाहिश है
यहां कौन कम्बख़त है जो मौत से डरता है

मेरे भीतर रहता है जो आदमी है वो हर वक़्त
मौत बस मौत फ़क़त मौत की बात करता है

मौत मार भी सकती है ये भरम मुझको नहीं
मौत से मेरा तो ताज़िन्दगी का रिश्ता है

कहाँ समझा पाया हूँ अबतलक मैं ही खुद को
अज़ब गुमान है उसे कि वो मुझे समझता है

सुलझना है तो उलझे को उलझा ही रहने दो
सुलझाना चाहता है जो अक्सर वही उलझता है

जिसने जिंदगी भर जिंदगी जी ही नहीं 'अनंत'
वही बस वही शख्स मौत के मारने से मरता है

अनुराग अनंत

मुझको तुम्हारे दिल में फ़क़त दिल मे रहना है...!!

कुछ कहूँ तुमसे तो बस यही कहूंगा कि
यार मुझको अब कुछ नहीं कहना है

मैं तुम्हारी जंदगी से जाना चाहता हूँ क्योंकि
मुझको तुम्हारे दिल में फ़क़त दिल मे रहना है

मैं अबतलक बस इसलिए सदियों से प्यासा हूँ
तू जो रोये तो तेरी आँखों का अश्क़ पीना है

ये जहान जिसे तेरा ख़ून समझ रहा है सनम
ये ना तेरा लहू, न आसूं है, न पसीना है

मैं आजकल मशरूफ़ हूँ, जिगर चाक़ करने में
मुझे इत्मीनान से बैठ कर ज़ख्म सीना है

लहर जो लहर होती तो कब का मर गया होता
ये जितनी लहरें है, लहर नहीं, सफीना है

जिसे कम समझते हो वो कतई कम नहीं 'अनंत'
जो जितना कम दिख रहा है, वो उतना कमीना है

अनुराग अनंत

रफ्ता रफ्ता तुम्हारी नज़रों से उतर सकूं...!!

मैं यहां इसलिए लुटा हूँ कि संवर सकूं
इसलिए समेटा है ख़ुद को कि बिखर सकूं

तुम्हारी आँखों पे चढ़ गया हूँ मैं इसलिए
रफ्ता रफ्ता तुम्हारी नज़रों से उतर सकूं

ठहरा हुआ हूँ इसलिए इस मोड़ के मुहाने पर
कि आतिश-ओ-आफ़त से हँस कर गुजर सकूं

मैं जी रहा हूँ मर जाने के इस मौसम में भी
कि सही वक़्त आने पर सुकून से मर सकूं

मैं कुछ नहीं करता हूँ 'अनंत' बस इसलिए
जो करना चाहूं बस वही, बस वो कर सकूं

अनुराग अनंत

गुरुवार, दिसंबर 07, 2017

जो खुद को इतना ऊंचा उठा रहे हो

जो खुद को इतना ऊंचा उठा रहे हो
तुम औरों को बौना बता रहे हो

बस तुम हो तुम ही तुम हो जहां में
ये अज़ब भरम है, जो जता रहे हो

आज तुम्हरा पता मिलता नहीं है
तुम एक अरसा मेरा पता रहे हो

साथ ऐसे थे कि समाए थे मुझमें
अब दूर ऐसे हो कि सता रहे हो

कि जिसने मुझको "मैं" किया है
तुम मेरी प्यारी ऐसी ख़ता रहे हो

-अनुराग अनंत

मेरा अधूरापन मुकम्मल हो रहा है

मेरा अधूरापन मुकम्मल हो रहा है
मैं एक सवाल था जो हल हो रहा हूँ

अपनी आंखों से बहना छोड़ कर अब तो
मैं उसकी आँखों का काजल हो रहा हूँ

यूं संभला हूँ कि बहका बहका रहता हूँ
अकल आई है ऐसे कि पागल हो रहा हूँ

बरसात रूठी है हम पर बरसते नहीं बादल
मैं इस कदर बंजर हूँ कि बादल हो रहा हूँ

हर सांस खंजर है, नश्तर है हर धड़कन
मैं जी रहा हूँ कि मुसलसल घायल हो रहा हूँ

मैं उसकी कैद में हूँ ऐसे कि वो आज़ाद है मुझसे
मैं उसके हाँथ का कंगन, पाँव का पायल हो रहा हूँ

अनुराग अनंत

वो कौन हैं जो जिंदगी को आसान कहते हैं

मेरी हर सांस पर तेरा नाम लिख दिया मैंने
लोग मुझको चलता फिरता दीवान कहते हैं

मैं हमेशा ही ज़मीन होना चाहता था
पर लोग हैं कि मुझको आसमान कहते हैं

जीते-जीते न जाने कितनी बार मरें हैं हम
वो कौन हैं जो जिंदगी को आसान कहते हैं

हज़ार नफ़रतों में भी जहाँ लोग मोहब्बत ढूढ़ लेते हैं
उस खुशरंग ज़मीं को दुनिया वाले हिंदुस्तान कहते हैं

अनुराग अनंत 

दर्द का अलाव

सर्द रातों में वो अपने दर्द को अलाव करता है
ये कैसा मरहम है जो और घाव करता है

इन दरख्तों ने उसे धोखा दे दिया जब से
ये सूरज ख़ुद उसके सर पे छाँव करता है

अनुराग अनंत

मयखाना क्या पिलाएगा..!!

मयखाना क्या पिलाएगा, जो पीना चाहते हैं हम
मौत से कह दो, अभी और जीना चाहते हैं हम

जागते रहो की आवाज़ मुसलसल करते रहो तुम
जागते रहो की आवाज़ के बीच सोना चाहते है हम

पा लिया है इतना कि इसे अब कहाँ रखेंगे यार
जो कुछ भी पाया है, उसे फिर खोना चाहते हैं हम

होते होते अब तक कुछ भी हो नहीं पाए हैं हम
कुछ नहीं हो कर, 'कुछ नहीं' होना चाहते हैं हम

हंसी झूठी है जिसे लबों पर लिए फिरते हैं "अनंत"
झूठी हंसीं उतार कर सच में रोना चाहते हैं हम


अनुराग अनंत

उससे ज्यादा तुम्हारा "तुम" तो यहाँ है..!!

तुम ही से मोहब्बत, तुम ही से है नफ़रत
तुम ही तुम हो, तुमसे इतर कुछ कहाँ है

तुम्हारे पास तुम जितना बचे हो यारा
उससे ज्यादा तुम्हारा "तुम" तो यहाँ है

मेरा "मैं" मुझमें अब तो बचा ही नहीं है
तुम्हारा तुम है जहां, मेरा "मैं" भी वहाँ है

मेरा क्या पता है, मेरा क्या ठिकाना
जहाँ पे हो तुम, बस वही मेरा ज़हाँ है

ये तेरे कदमों के जाते हुए जो निशां हैं
मेरी जान जाने के भी यही निशां है

अनुराग अनंत

सारी हैरत ग़र्क हुई..!!

सारी हैरत ग़र्क हुई, अब सारा अचंभा जाता है
मायूस आवाजें कहतीं है, वो चौथा खंभा जाता है

दुष्यंत का वो बूढ़ा जिसने नाम हिंदुस्तान कहा था
लुटियन की अंधी गलियों में वो नंगा नंगा जाता है

अनंत

मैंने तुम्हें इस तरह बरता कि किताब कर दिया

मैंने तुम्हें इस तरह बरता कि किताब कर दिया
तुमनें मुझे उस तरह जिया कि ख़्वाब कर दिया

मैनें यूं बसाया खुद को कि आबाद न हो सका
तुमने यूं संवारा कि एकदम ख़राब कर दिया

तुम्हारे सवाल पर सवाल पूछना चाहता था मैं
पर तुम्हारे जवाब ने मुझे लाज़वाब कर दिया

आईना होने की हसरत फ़क़त हसरत ही रह गयी
जो लोग आईना थे उन्होंने मुझे नक़ाब कर दिया

इश्क़ ने ऐसा लूटा है मुझे कि गज़ब लूटा है 'अनंत'
मुझसे, मुझको लूट कर उसने मुझे नवाब कर दिया

अनुराग अनंत