सच बोलने का जज्बा हम अपने अन्दर ले कर चलते हैं
हम वो पागल कतरे हैं जो दिल में समंदर ले कर चलते हैं
उनसे कह दो कि यहाँ हैं सर भी बहुत और बाजू भी बहुत
जो लाठी, झंडा, तलवार, खुखरी और खंजर ले कर चलते हैं
वो आंधी, तूफानों और काले कानूनों से हमें डरता फिरता है
उसे नहीं मालूम हम अपने संग में बवंडर ले कर चलते हैं
हम उन किसानों के बच्चे हैं जो फांसी के फंदों की भेट चढ़े
हम अपनी आँखों में अश्क नहीं, मौत के मंजर ले कर चलते हैं
वो ऐयारों के सरदार 56 इंच की छाती पर फूले नहीं समाते हैं
और हम हैं जो अपनी छाती पर सारा अम्बर ले कर चलते हैं
हम खून-पसीने, जीने-मरने वाले कब हद-ए-जिस्म में कैद रहे
हम अब तो दर-ए-मकतल को जिस्म ये जर्जर लेकर चलते हैं
अनुराग अनंत
हम वो पागल कतरे हैं जो दिल में समंदर ले कर चलते हैं
उनसे कह दो कि यहाँ हैं सर भी बहुत और बाजू भी बहुत
जो लाठी, झंडा, तलवार, खुखरी और खंजर ले कर चलते हैं
वो आंधी, तूफानों और काले कानूनों से हमें डरता फिरता है
उसे नहीं मालूम हम अपने संग में बवंडर ले कर चलते हैं
हम उन किसानों के बच्चे हैं जो फांसी के फंदों की भेट चढ़े
हम अपनी आँखों में अश्क नहीं, मौत के मंजर ले कर चलते हैं
वो ऐयारों के सरदार 56 इंच की छाती पर फूले नहीं समाते हैं
और हम हैं जो अपनी छाती पर सारा अम्बर ले कर चलते हैं
हम खून-पसीने, जीने-मरने वाले कब हद-ए-जिस्म में कैद रहे
हम अब तो दर-ए-मकतल को जिस्म ये जर्जर लेकर चलते हैं
अनुराग अनंत
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