शनिवार, अप्रैल 30, 2016

इस दर्द को बर्बाद कौन करे..!!

नाशाद ही रहने दो दिल को
इस दिल अब शाद कौन करे

ये दर्द मुझे उसका तोफा है
इस दर्द को बर्बाद कौन करे

मैं यादों का वाहिद कैदी हूँ
इन यादों से आजाद कौन करे

कातिल और मुंसिफ वो ही है
अब उससे फ़रियाद कौन करे

वो चाहे मैं खुद को क़त्ल करूँ
पर मुझको जल्लाद कौन करे

यहाँ साये दरख्त निगलते हैं
इस शहर को आबाद कौन करे

हरसू धूप ही धूप का कब्ज़ा है
इस धूप को शमशाद कौन करे

अनुराग अनंत

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