मंगलवार, दिसंबर 30, 2014

मैं एक ज़ंग में था और ज़ंग का सामान नहीं था..!!

उसे भुला कर जीना इतना भी आसान नहीं था
मैं एक ज़ंग में था और ज़ंग का सामान नहीं था

वो जो गया, मेरा सब कुछ साथ ले गया अपने
मेरे पास मेरी जमीं नहीं थी, मेरा आसमान नहीं था

उसका मिलना मेरे खातिर, एक परेशानी का सबब रहा
मैं पहले भी परेशान था, पर इतना भी परेशान नहीं था

अहले सियासत तूने मुझे नांदानियत का इल्म करा दिया
मैं जिसे नांदान समझता था, वो इतना भी नांदान नहीं था

दुनिया को दस्त में ले, जो जिंदगी भर बेलौस ही जीया
कलंदर था वो “अनंत”, उसे इस बात का गुमान नहीं था

अहले-आलम मुसलसल भरते रहे आह, मेरे ग़म-ओ-दर्द पर
कम्बखत एक शख्स भी, मेरे आंसुओं से अनजान नहीं था

--अनुराग अनंत

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