मंगलवार, दिसंबर 30, 2014

मैं एक ज़ंग में था और ज़ंग का सामान नहीं था..!!

उसे भुला कर जीना इतना भी आसान नहीं था
मैं एक ज़ंग में था और ज़ंग का सामान नहीं था

वो जो गया, मेरा सब कुछ साथ ले गया अपने
मेरे पास मेरी जमीं नहीं थी, मेरा आसमान नहीं था

उसका मिलना मेरे खातिर, एक परेशानी का सबब रहा
मैं पहले भी परेशान था, पर इतना भी परेशान नहीं था

अहले सियासत तूने मुझे नांदानियत का इल्म करा दिया
मैं जिसे नांदान समझता था, वो इतना भी नांदान नहीं था

दुनिया को दस्त में ले, जो जिंदगी भर बेलौस ही जीया
कलंदर था वो “अनंत”, उसे इस बात का गुमान नहीं था

अहले-आलम मुसलसल भरते रहे आह, मेरे ग़म-ओ-दर्द पर
कम्बखत एक शख्स भी, मेरे आंसुओं से अनजान नहीं था

--अनुराग अनंत

बुधवार, दिसंबर 24, 2014

देह को बेदी करके हमने, रूह का हवन किया है..!!

तुझे भुलाने को हमने क्या क्या जतन किया है
देह को बेदी करके हमने, रूह का हवन किया है

सांस-सांस मरघट बोला है, धड़कन में अवसाद हंसा है
जिन यादों ने मुझको मारा, उनको खुद में दफ़न किया है

तुझको ओढा था, तुझे बिछाया, पहरन, गहना तुझे बनाया
तेरे जाने के बाद हमने, दिल के सूनेपन को कफ़न किया है

तूने जब जब हम पर वार किया, हमने हंस कर टाल दिया है
ए कातिल तेरे हर वार का हमने, अपने दिल पर वरन किया है

अश्क हमारे बेबस ठहरे, कुछ कह न पाए, रह रह ढुलके
दर्द जो गहराया दिल में तो हमने उसको सुखन किया है

-अनुराग अनंत

या तो खुदा की रहमत थी, या फिर जीने का हुनर था..!!

ये उलझन, ये बेबसी, ये मसायल, ये तगाफुल
मैं सोचता हूँ तुमसे न मिला था, तभी बेहतर था

तुमने मिल के कुछ यूं छुआ कि खिजां हो गया मैं
तुम न थे जिंदगी में तो, मैं एक सब्ज शजर था

क्या दिया, क्या लिया तुमने, जो हिसाब करता हूँ
हर तरफ आवाज उठती है, वो एक बेसबब सफ़र था

गज़ब है कि तुम्हारे साथ रहे और बचे भी रहे अब तक
या तो खुदा की रहमत थी, या फिर जीने का हुनर था

तुम्हारी हर अदा, मोहब्बत, इश्क़-ओ- फिकर की बातें
अब समझ में आता है कि वो तो साजिशों का कहर था

यूं लुटते रहे तुमसे और निभाते भी रहे अब तक
रेशमी इश्क़ था तुमसे, ये उस रेशम का असर था

-अनुराग अनंत 

रविवार, मार्च 23, 2014

एक ख्वाब है !!

एक ख्वाब है जो मुझे कभी जीने नहीं देता
एक ख्वाब है जो मुझे कभी मरने नहीं देता 

डर कर जीता, तो वजीर-ए-निजाम हो सकता था 
न जाने क्या है भीतर, जो मुझे कभी डरने नहीं देता

ये वो सड़क है जहाँ बड़े-बड़े साहिब-ए-किरदार गिर पड़े 
जिन्दा है मेरा ईमान वो मुझे कभी गिरने नहीं देता 

समंदर के किनारे एक गरौंदा, जो बेख़ौफ़ खड़ा मिला 
एक बच्चे हंस कर कहा, मैं इसे कभी बिखरने नहीं देता

सियासत के बाज़ार में तेज़ाब बिकता रहा, बांटता रहा
ये तेज़ाब मोहब्बत को कभी सजने-सँवरने नहीं देता

चाहता तो वो भी है कि रहे घर-ओ-वतन में सुकून से
पर भूख का कहर उसे घर में कभी ठहरने नहीं देता.

तुम्हारा- अनंत