बुधवार, जुलाई 24, 2013

कुछ चंद लोग छाए हैं बहार की तरह..

कुछ चंद  लोग छाए हैं बहार की तरह
बहुत से लोग दफ़न हैं मजार की तरह

सजी है अदालत, मेरे क़त्ल का मुकादमा है
और मैं ही खड़ा हूँ, कटघरे में गुनाहगार की तरह

ए जिंदगी, तू मुझे मौत देगी, मैं जनता हूँ ये
पर मैं लड़ कर मारूंगा, एक सिपहसालार की तरह

जब-जब ज़रूरत पड़ी, तुमने मुझे निकाल लिया
मैं तुम्हारी म्यान में रहा सदा, तलवार की तरह

आज-कल मुझमे महज़ शोर बसता है
मेरे भीतर कुछ पनप रहा है बाज़ार की तरह

जब याद आती है उसकी,सच कहता हूँ मैं
ये दिल सुलग उठता है, अंगार की तरह

मेरे ख़्वाब मुझ तक अब आ नहीं पाते
रोटी की फिकर खड़ी है,दिवार की तरह

ये वक्त हमें क्या, मिटा पायेगा  "अनंत"
हम इसके दिल में बसे है,प्यार की तरह

तुम्हारा--अनंत

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