सच्ची मोहब्बत यूँ ही कहने-सुनने की चीज़ नहीं होती ,
ये वो चीज़ है ''अनंत ''जिसे दिल से समझना पड़ता है ,
गुमनामी है ,बदनामी है ,पागलपन और बदहवासी है ,
बस इन्ही सब के साथ , दिन-रात रहना पड़ता है ,
एक बार मेरी ग़ज़ल को सीने से लगा कर तो देखो ,
तुम्हे एहसास होगा ,गम से ग़ज़ल गढ़ना पड़ता है ,
जब तुम समझती नहीं हो , मेरी आँखों की बात ,
मुझे मजबूरी में इन कागजों से कहना पड़ता है
बरसात आती है जब ,तूफ़ान साथ ले कर के ,
दरख्तों को गिरना पड़ता है ,घरों को ढहना पड़ता है ,
मोहब्बत एक ऐसा बेरहम मक़तल है ,जहाँ पर ,
जिसे जीने की चाहत में ,हँस कर मरना पड़ता है ,
अरमानों के परिंदों का ,तुमने पर काट दिया है ,
बेचारे परिंदों को ,बिना पर के उड़ना पड़ता है ,
हाँ ये सच कहा तुमने की हम कोई शायर नहीं है ,
पर अश्कों को कहीं न कहीं तो बहना पड़ता है ,
तुम्हारा --अनंत