गुरुवार, नवंबर 11, 2010

न हुआ मेरा कोई कोई....

न हुआ मेरा कोई कोई ,न मुझे किसी और का होना आया ,
मेरे आने पर न हंसा कोई ,न मेरे जाने पर किसी को रोना आया ,
मैं बादल था अश्कों का, बरसता तो भीगा भी सकता था,
पर अफसोस न मुझे बरसना आया ,न भिगोना आया ,

मैं जुता खेत सा पड़ा था उसके सामने ,वो मेरे सामने खड़ा था,
बड़ा नादाँ निकला वो कि जिसे मुहब्बत का बीज न बोना आया ,
टूट कर बिखरा था मैं जिसके भरोसे ,माला की तरह ,
उस बेरहम माली को, माला न पिरोना आया,
जी सकता है बस वही ,बेवफाई झेल कर अनंत ,
जिसे जिन्दगी के नाम पर मोत को ढोना आया ,
'' तुम्हारा --अनंत ''

बुधवार, नवंबर 10, 2010

जब दिल दुखता है हंस देते है....

हँसी अक्सर खुशी  ही नहीं दिखाती, कभी- कभी गम भी हँसी में लिपटा हुआ  दिखता है ,बल्कि मैं तो कहता हूँ जो ज्यादा हँसता है उसके दिल में ज्यादा गम होता है,और ऐसे हंसमुख लोगों का जब दिल दुखता है तो  वो रोते नहीं हँस  देते है,
तो आईये में आपको एक ऐसी ही कविता से रूबरू  कराता  हूँ, जहां दिल दुखने पर हंसी आती है रोना नहीं,



जब दिल दुखता है हंस देते है,
गुमसुम सी है कथा हमारी,
न पूछे कोई व्यथा हमारी,
हम नीरस पलों में जीते है,पर जग को कविता का रस देते है,
जब दिल दुखता है हंस देते है,
हम छाया से भी जल जाते है,
बर्फ के टुकड़ों सा गल जाते है,
जब उड़ते है अरमान हमारे,हम खुद उनको कस देते है,
जब दिल दुखता है हंस देते है,
सब कुछ गीला-गीला हो है,
कोई बीज याद के बो जाता है,
कितना भी रोकें हम पर,आखों के बादल अश्रु बरस देते है,
जब दिल दुखता है हंस देते है,


:::::तुम्हारा::::अनंत::::

सोमवार, नवंबर 08, 2010

मैं मर गया हूँ बहुत पहेले....


मैं मर गया हूँ बहुत पहेले,अब तो जिन्दा लाश बाकी है,
वो हो गयी है परायी फिर भी उसे पाने की आस बाकी है।
मैं अश्कों का समंदर पी कर भी प्यासा हूँ,
न जाने कैसी कम्बख्क्त है जो ये प्यास बाकी है
क्यों टूटती नहीं नब्ज, क्यों धड़कन बंद नहीं होती,
न जाने इस जिस्म में कितनी सांस बाकी है
तुझे मैंने पाया था कुछ इस कदर, 
तू जितनी खुद के पास नहीं ,उससे ज्यादा मेरे पास बाकी है
मिल गया मेरा पुर्जा -पुर्जा ,पर मेरा दिल खो गया है,
बस उसी खोये हुये दिल की तलाश बाकी है
जिस जगह जला इश्क का दरिया ,मुहब्बत का समंदर झुलसा था 
उसी जगह पड़ी हुई तेरी यादों की कपास बाकी है
मेरी लाश को दफनाते वक़्त जब जमीन ने मना किया 
हाँथ फ़ैल कर आकाश ने कहा ,अभी तो सारा आकाश बाकी है
""तुम्हारा --अनंत''



बहुत दिन बाद....

बहुत दिन बाद वो मुझसे हंस कर बोली थी
जो मैंने यूं ही पुरानी डायरी खोली थी,
हर शफे पर उसका चेहरा उभर आया था
हर एक हर्फ़ पर उसकी हंसी ठिठोली थी,
डायरी के आखरी पन्ने पर कुछ मैंने गढ़ा था
गौर से देखा तो पाया दो कंगन ,एक घगरा ,एक चोली थी,
मुझे याद आया यो पुराना शहर वो पुरानी गली
जिसमे मैं नुक्कड़ वाला था,और वो किनारे वाली थी,
दो नन्हे हाँथ बने थे किसी बीच के पन्ने पर 
एक हाँथ में कपडे की गुडिया थी ,एक हाँथ में कांच की गोली थी,
पढ़ी हरकत जो आपनी कहा मैंने हंस कर के
मैं भी ब़डा भोला था वो भी ब़डी भोली थी,
''तुम्हारा --अनंत ''